Tuesday, August 7, 2018

यादव कौन है ? यादव का इतिहास ,कृष्ण यादवो के पूर्वजो थे |


यादव जाती का इतिहास

                                       

यादव वंश प्रमुख रूप से अहीर – व्रष्णि तथा सत्वत नामक समुदायो से मिलकर बना था, जो कि भगवान कृष्ण के उपासक थे। यह लोग प्राचीन भारतीय साहित्य मे यदुवंश के एक प्रमुख भाग के रूप मे वर्णित है।  प्राचीन, मध्यकालीन व आधुनिक भारत मे अहीर  यादव नाम से जाने जाते है।

पुराण


पुराणों के विश्लेषण से यह निश्चित रूप से मान्य है कि अंधक,वृष्णि, सत्वत तथा अहीर जातियो को संयुक्त रूप से यादव कहा जाता था जो कि श्रीक़ृष्ण की उपासक थी। परंतु यह भी सत्य है कि पुराणो मे मिथक तथा दंतकथाओं के समावेश को नकारा नहीं जा सकता, किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि पौराणिक संरचना के तहत एक सुद्र्ण सामाजिक मूल्यो की प्रणाली प्रतिपादित की गयी थी।

यादव जाति के मूल मे निहित वंशवाद के विशिष्ट सिद्धांतानुसार, सभी भारतीय गोपालक जातियाँ, उसी यदुवंश से अवतरित है जिसमे श्रीक़ृष्ण (गोपालक व क्षत्रिय) का जन्म हुआ था । उन लोगों मे यह द्रढ़ विश्वास है कि वे सभी श्रीक़ृष्ण से संबन्धित है तथा वर्तमान की यादव जातियाँ उसी प्राचीन वृहद यादव सम समूह से विखंडित होकर बनी हैं।                   
                                 

यादव शब्द कई जातियो को आच्छादित करता है जो मूल रूप से अनेकों नामों से जानी जाती है, हिन्दी क्षेत्र, गुजरात व पंजाब मे  – अहीर ग्वाला, महाराष्ट्र, गोवा, आंध्र व कर्नाटक मे- गवली, जिनका सामान्य पारंपरिक कार्य चरवाहे, गोपालक व दुग्ध-विक्रेता हैं ।

यादव लगातार अपने जातिस्वरूप आचरण व कौशल को उनके वंश से जोड़कर देखते आए हैं जिससे उनके वंश की विशिष्टता स्वतः ही व्यक्त होती है। उनके लिए जाति मात्र पदवी नहीं है बाल्कि रक्त की गुणवत्ता है, और ये द्रष्टव्य नया नही है। अहीर (वर्तमान मे यादव) जाति की वंशावली एक सैद्धान्तिक क्रम के आदर्शों पर आधारित है तथा उनके पूर्वज, गोपालक योद्धा श्री कृष्ण पर केन्द्रित है, जो कि एक क्षत्रिय थे।


क्षत्रियों का प्रधान वंश यादव वंश है :-


क्षत्रियों का प्रधान वंश यादव वंश है। यादव-कुल की एक अति-पवित्र शाखा ग्वालवंश है जिसका प्रतिनिधित्व नन्द बाबा करते थे । बहुत से अज्ञानी दोनों को अलग -अलग वंश का बताते हैं । मूर्खों को ये मालूम नहीं की नन्द बाबा और कृष्ण के पिता वासुदेव रिश्ते में भाई थे जिसे हरिवंश पुराण में पूर्णतः स्पष्ट किया गया है। भागवत पुराण में भी इस बात का जिक्र है । ग्वालवंश में ही समस्त यादवों की कुल-देवी माँ विंध्यवासिनी देवी ने जन्म लिया था । भागवत पुराण के अनुसार तो भगवान् श्रीकृष्ण के गोकुल प्रवास के दौरान सभी देवी-देवताओं ने ग्वालों के रूप में अंशावतार लिया था। इसीलिए ग्वालवंश को अति-पवित्र माना जाता है ।

ययाति


यादवो के आरम्भ के बारे में जानने के लिए हमें भागवत पुराण में जाना पड़ेगा. चन्द्र वंश में प्रसिद्ध राजा ययाति (नहुष के पुत्र) हुए हैं. ययाति एक बार अशोक वन में शुक्राचार्य की बेटी देवयानी से मिले और दोनों ने एक दुसरे को पसंद किया.

 शर्मिष्ठा 


देवयानी की मित्र और असुर पुत्री शर्मिष्ठा भी देवयानी के साथ खेलती थी और उनकी बहुत गहरी मित्रता थी. विवाह के समय शर्मिष्ठा को दहेज़ के रूप में देवयानी के साथ खेलने के लिए दे दिया गया परन्तु शुक्राचार्य ने चेतावनी दी कि ययाति शर्मिष्ठा से विवाह नहीं करेगाकी सहमति से दोनों का विवाह हो गया.ययाति और शर्मिष्ठा

शर्मिष्ठा को एक अशोक वाटिका में स्थान दे दिया गया जबकि देवयानी महल में रह रही थी. इस बीच वह भी राजा को पसंद करने लगी थी. एक दिन राजा ययाति के वहां से निकलते समय उसने अपने मन की बात कह दी और देवयानी को बिना बताययाति का शाप

देवयानी के 2 बेटे और शर्मिष्ठा से 3 बेटे हुए. एक दिन देवयानी को यह पता चल गया और उसने यह बात अपने पिता को बता दी. तब उन्होंने ययाति को शाप दे दिया की वह अभी बूढा हो जाये और सारी शक्ति क्षीण हो जाये.ये दोनों ने विवाह शाप का उपाय
                                                       

शुक्राचार्य ने कहा की अगर उनका कोई पुत्र उनकी वृद्धावस्था लेले और बदले में अपनी जवानी देदे तो वह फिर से जवान हो सकते हैं. इसके बाद ययाति ने पुत्रों के सामने प्रस्ताव रखा कि जो उसे अपनों जवानी देगा उसे ही राज्य मिलेगा.कर लियदुवंश का उद्दभव

सबसे छोटे बेटे पुरु ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. कुरुवंश (कौरव पांडव) इन्ही के वंशज हुए हैं. सबसे बड़े बेटे यदु ने अपना अलग राज्य स्थापित कर यदुवंश की स्थापना की. वसुदेव यदु के ही वंशज थे, इसलिए यादव भी क्षत्रिय हैंयायादव जाती का अर्थ  !!



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